development of eastern india takes shape in bihar bjp govt will automatically start forming
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मोतिहारी, बिहार के गांधी मैदान में एक चुनाव पूर्व रैली कर 7217 करोड़ रुपये की विभिन्न लोकलुभावन परियोजनाओं की सौगात दी। देखा जाए तो आगामी अक्टूबर-नवम्बर माह में होने वाले बिहार विधानसभा चुनाव 2025 से पहले बीते महज 45 दिनों यानी डेढ़ महीने में उनका यह तीसरा बिहार दौरा है। उल्लेखनीय है कि इससे पहले उन्होंने 20 जून को सीवान में और 30 मई को बिक्रमगंज (रोहतास) में उनकी रैली हुई थी, जिस दौरान भी उन्होंने उन इलाकों में हजारों करोड़ रूपये के विकास कार्यों की शुरुआत हुई थी। उम्मीद है कि आने वाले दिनों में उनके दौरे और बढ़ेंगे, जिससे साफ है कि यूपी में लगातार दूसरी पारी खेल रही भाजपा की देशव्यापी सफलता के लिए बिहार विस चुनाव अब काफी अहम हो चुका है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का मानना है कि जब बिहार में पूर्वी भारत के विकास की अंगड़ाई आकार लेगी तो पड़ोसी राज्यों में भाजपा की सरकारें खुद-ब-खुद बनती चली जाएंगी। बस, थोड़ी मेहनत करनी होगी, जिससे वो कतई नहीं हिचकते। दरअसल, इसकी दो वजहें हैं- पहली, सियासत में यूपी-बिहार को महाराष्ट्र-गुजरात, राजस्थान-मध्यप्रदेश, हरियाणा-पंजाब, पश्चिम बंगाल-असम, कर्नाटक-आंध्रप्रदेश और केरल-तमिलनाडु आदि की तरह ही जुड़वा भाई समझा जाता है। दूसरी, भाजपा की सबसे पुरानी गठबंधन सहयोगी पार्टी जदयू अपनी प्रतिस्पर्धी राजनीतिक पार्टी राजद से जमीनी सियासी चुनौतियों का सामना कर रही है, जिससे ब्रेक के बाद भाजपा के सुनहरे राजनीतिक सपने भी प्रभावित होते आए हैं। यही वजह है कि यहां पर एनडीए के साथ-साथ भाजपा का भी मजबूत होना बेहद जरूरी है।
चूंकि हाल के वर्षों में पहले हरियाणा विधानसभा चुनाव में भाजपा की फतह, फिर महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में भाजपा की जीत, ततपश्चात दिल्ली विधानसभा चुनाव में भाजपा की फतह और उसके बाद उड़ीसा विधानसभा चुनाव में भाजपा की जीत के मुख्य सूत्रधार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ही रहे हैं, इसलिए उन्होंने आगामी बिहार विधानसभा चुनाव में भाजपा नीत एनडीए की फतह के लिए अपना होमवर्क शुरू ही नहीं किया, बल्कि उसे तेज कर दिया है। यह इसलिए भी जरूरी है कि अगले वर्ष पश्चिम बंगाल में भी विधानसभा चुनाव होने वाले हैं, जिसे जीतना भाजपा के लिए बहुत जरूरी है। ऐसा इसलिए कि यह जनसंघ (अब भाजपा) के संस्थापक श्यामा प्रसाद मुखर्जी का गृह प्रदेश के साथ साथ भारत की सांस्कृतिक राजधानी कोलकाता को प्रभावित करने वाला प्रदेश भी है। अभी हाल ही में बंगलादेश (पूर्वी पाकिस्तान) से जो चुनौती मिली या मिल रही है, उससे पश्चिम बंगाल में भाजपा का मजबूत होना अब राष्ट्रीय जरूरत बन चुकी है।
वहीं, वर्ष 2026 में ही असम विधानसभा के चुनाव भी होंगे, जिसमें भाजपा के कद्दावर मुख्यमंत्री हिमंता विश्वशर्मा की सरकार को रिपीट करवाना भी भाजपा नेतृत्व के लिए बेहद आवश्यक है। क्योंकि पूर्वोत्तर में भाजपा और एनडीए की बढ़त के पीछे असम की सियासत का बड़ा योगदान है। अपने देखा होगा कि तमाम तैयारियों के बावजूद भाजपा विगत झारखंड विधानसभा चुनाव में एक छोटी क्षेत्रीय पार्टी झामुमो के हाथों शिकस्त खा चुकी थी, क्योंकि उसे इंडिया गठबंधन का मजबूत साथ मिल गया। इसलिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पूर्वी भारत के सभी राज्यों में भाजपा को मजबूत करने की कमान अपने हाथ में ले ली है। क्योंकि ‘मोदी है तो जीत मुमकिन है’ वाला सियासी फॉर्मूला प्रायः हर जगह पर हिट हो जाता है। बता दें कि देश के पूर्वी राज्यों में बिहार, झारखंड, उड़ीसा, पश्चिम बंगाल के अलावा उत्तर-पूर्व के सात बहन राज्यों की भी गणना की जाती है, जिसमें असम का राजनीतिक स्थान महत्वपूर्ण है। माना जाता है कि पूर्वी भारत के 11 राज्य देश के सर्वाधिक पिछड़े और गरीब राज्यों में से एक हैं, जहां के लोगों का जीवन स्तर भी अपेक्षाकृत निम्न है। इसलिए भाजपा की सकारात्मक पहल यहां रंग ला सकती है।
यही वजह है कि बिहार की सियासी यात्राओं में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पूर्वी भारत के विकास के सुनहरे सपने दिखा रहे हैं। पीएम मोदी ने मोतिहारी में दो टूक कहा- हमारा संकल्प है कि आने वाले समय में जैसे पश्चिमी भारत में मुंबई है, वैसे ही पूरब में मोतिहारी को बनाना है। पूर्वी भारत के विकास के लिए बिहार को विकसित बनाना है। इस दौरान उन्होंने एनडीए सरकार के विकास कार्यों को गिनाते हुए कहा कि आज बिहार में तेजी से विकास का काम हो रहा है, क्योंकि केंद्र और बिहार में एनडीए की डबल इंजन सरकार है।
पीएम मोदी ने आगे कहा कि जैसे अवसर गुरुग्राम में हैं, वैसे ही अवसर गया जी में भी बनें। पुणे की तरह पटना में भी औधोगिक विकास हो। सूरत की तरह ही संथाल परगना का भी विकास हो। जयपुर की तरह जलपाईगुड़ी और जाजपुर में भी टूरिज्म के नए रिकॉर्ड बने। बंगलुरू की तरह वीरभूम के लोग भी आगे बढ़ें। ये इसलिए संभव है क्योंकि केंद्र और राज्य में बिहार के लिए काम करने वाली सरकार है। देखा जाए तो पूर्वी भारत के किसी भी राज्य में पीएम मोदी जाएं, लगभग एक समान बातें दोहराते हैं, ताकि पूर्वी भारत भी उत्तर भारत, दक्षिण भारत और पश्चिम भारत की तरह ही समग्र विकास के पैमाने पर खरा उतर सके।
एक आंकड़ा देते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि जब केंद्र में कांग्रेस और आरजेडी की सरकार थी, तो यूपीए के 10 साल में बिहार को सिर्फ दो लाख करोड़ रुपये के आसपास मिले थे। लेकिन जब 2014 में आपने मुझे सेवा करने का अवसर दिया तो केंद्र में आने के बाद मैंने बिहार से बदला लेने वाली उस पुरानी राजनीति को भी समाप्त कर दिया। पिछले साढ़े 11 साल में, एनडीए के 10 वर्षों में बिहार के विकास के लिए जो राशि दी गई है, वो पहले से कईं गुना ज्यादा है। बिहार में ये पैसा जन कल्याण और विकास के काम आ रहा है।
पीएम मोदी ने कटाक्ष करते हुए कहा कि आरजेडी और कांग्रेस के राज में बिहार में विकास पर ब्रेक लगा हुआ था। लेकिन बिहार असंभव को भी संभव बनाने वाले वीरों की धरती है। चूंकि आप लोगों ने इस धरती को राजद और कांग्रेस की खतरनाक बेड़ियों से मुक्त किया, असंभव को संभव बनाया। इसलिए यह उसी का परिणाम है कि आज बिहार में गरीब कल्याण को योजनाएं सीधे गरीबों तक पहुंच रही है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बिहार के मोतिहारी से एनडीए के चुनाव अभियान को एक कदम और आगे बढ़ाया है। यहां पर लाखों लोगों की मौजूदगी में उन्होंने “फिर एक बार एनडीए सरकार” का नारा बुलंद किया। वहीं, भाषण सुनने पहुंची महिलाओं से मुखातिब होते हुए नरेंद्र मोदी ने कहा कि राज्य को आगे बढ़ाने में उनकी बड़ी भूमिका है। यह भी याद दिलाया कि नीतीश कुमार ने जीविका के माध्यम से महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए बहुत कुछ किया। केंद्र सरकार भी अधिक से अधिक महिलाओं को लखपति दीदी बनाने के लिए संकल्पित है।
नरेंद्र मोदी ने आगे कहा कि बिहार को आगे बढ़ाने में सबसे बड़ी ताकत बिहार के माता बहनों की है। एनडीए द्वारा उठाए जा रहे एक-एक कदम का महत्व बिहार की माताएं बहने अच्छी तरह समझती हैं। इतनी बड़ी संख्या में माताएं बहनें मुझे आशीर्वाद देने आई हैं। यह बिहार की बढ़ती ताकत में उनकी भागीदारी का संकेत है। पहले ना बैंकों में उनका ना खाता होता था, ना कोई घुसने देता था। आपको 10 रुपए भी छुपा कर रखना पड़ता था। इसलिए मोदी ने गरीब के लिए बैंकों के दरवाजे खुलवा दिए और अभियान चलाकर जनधन खाते खुलवाए। इसका सबसे बड़ा लाभ दलित परिवार की महिलाओं को मिला और आज 3.5 करोड़ जनधन खाते हैं। सरकारी योजनाओं का पैसा सीधा इन खातों में जा रहा है।
इस प्रकार देखा जा रहा है कि प्रधानमंत्री के बार-बार बिहार दौरे से विधानसभा चुनाव 2025 को लेकर राजनीतिक माहौल भी निरंतर गर्म होता जा रहा है। चूंकि राज्य में मुख्य मुकाबला राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) और इंडी महागठबंधन (राजद, कांग्रेस, वाम दल) के बीच है। लेकिन, जन सुराज के नेता प्रशांत किशोर भी पूरी ताकत से चुनावी मैदान में उतरने की तैयारी में जुटे हुए हैं। इससे दोनों बड़े राजनीतिक समूहों को उम्मीद है कि जनसुराज को जितने अधिक वोट मिलेंगे, उनकी जीत की संभावना उतनी अधिक रहेगी। इसके अलावा, जनसुराज के मजबूती से उभरने की स्थिति में उनपर डोरे डालकर सत्ता तक पहुंचना आसान हो जाएगा।
बता दें कि राज्य में एनडीए की ओर से बीजेपी और जेडीयू एक बार फिर पारस्परिक गठबंधन में चुनाव लड़ रहे हैं। जिससे नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता और नीतीश कुमार के परिपक्व सियासी अनुभव को मिलाकर वे दोनों दल सत्ता में दमदार वापसी का दावा कर रहे हैं। वहीं, ओपिनियन पोल्स के अनुसार भी एनडीए को अभी बढ़त दिखाई जा रही है, खासकर शहरी क्षेत्रों और महिला मतदाताओं में। हालांकि, सीटों का आंकड़ा 2015 और 2020 की तुलना में थोड़ा कमतर भी आंका जा रहा है।
दूसरी ओर इंडी महागठबंधन की अगुवाई कर रहे राजद सुप्रीमो तेजस्वी यादव कांग्रेस और वामपंथी दलों को साधते हुए रोजगार, शिक्षा, भ्रष्टाचार और अपराध जैसे मुद्दों को लेकर लगातार आक्रामक चुनाव प्रचार कर रहे हैं। यही वजह है कि कुछ सर्वे में उन्हें भी अच्छा समर्थन मिलता दिखाई दे रहा है, खासकर युवाओं और ग्रामीण मतदाताओं में। हालांकि, आप के इंडिया गठबंधन से अलग होने और बिहार में उसके अकेले चुनाव लड़ने की घोषणा से राजद-कांग्रेस की बेचैनी बढ़ी है। वहीं, एआईएमआईएम से राजद-कांग्रेस की यदि चुनावी पटरी नहीं बैठी तो वह भी चुनावी ताल ठोकेगी, जिससे धर्मनिरपेक्ष वोटों का बंटवारा तय है। भाजपा यही चाहती भी है।
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जबकि प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी पहली बार बिहार विधानसभा चुनाव लड़ने जा रही है। हालांकि उन्हें सीमित सीटों पर समर्थन मिल सकता है, फिलहाल राज्यभर में कोई व्यापक लहर उनके पक्ष में नजर नहीं आ रही है। हालांकि, श्री किशोर मशहूर सियासी रणनीतिकार रहे हैं, जो चुनाव के अंतिम क्षणों में हवा का रुख मोड़ने में माहिर समझे जाते हैं। चूंकि भाजपा, कांग्रेस, जदयू, टीएमसी, आप के अलावा कई क्षेत्रीय पार्टियों के वे और उनके लोग सलाहकार रहे हैं, इसलिए अपने विशालकाय सियासी रणनीतिक अनुभवों से वो बिहार में मजबूती पूर्वक अपनी जड़ें जमा चुके हैं। यदि बिहार के सवर्णों ने एकजूट होकर प्रशांत किशोर के जनसुराज को वोट दे दिया तो एनडीए और इंडी गठबंधन के कांटे की टक्कर में वो 75-100 से ज्यादा सीटें निकाल सकते हैं।
ऐसा इसलिए कि बिहार के सवर्ण विगत 35 सालों से यादव-लवकुश समीकरण के बीच सत्ता की अदला-बदली और बेलगाम अपराध-भ्रष्टाचार से ऊब चुके हैं, इसलिए प्रशांत किशोर में उन्हें अपना भविष्य नजर आ रहा है। हालांकि, प्रशांत किशोर भी अत्यंत पिछड़ी जातियों, दलितों और अल्पसंख्यकों को अपनी पार्टी से जोड़ रहे हैं। ऐसे में यदि सवर्णों का सियासी जोरन उन्हें मिल गया तो उनकी सत्ता तक पहुंचने वाली जनतांत्रिक दही जम सकती है। इससे उनके समर्थकों का सेहतमंद होना स्वाभाविक है।
इस प्रकार स्पष्ट है कि राज्य में सामाजिक समीकरण, जातीय ध्रुवीकरण और केंद्र व राज्य सरकार की लोकलुभावन योजनाओं का असर भी नतीजों को प्रभावित कर सकता है। हालांकि मतदाता इस बार किन मुद्दों को प्राथमिकता देते हैं, यही तय करेगा कि बिहार की सत्ता की चाबी किसके हाथ में जाएगी। वहीं, नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की चुनावी जुमलेबाजी पर कटाक्ष करते हुए कहा है कि विगत साढ़े 11 साल पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मोतिहारी में चीनी मिल खोलकर उसमें बनी चीनी की चाय पीने का वादा किया था, मगर आज तक वह पूरा नहीं हो पाया है। इसलिए उनके वायदों के चक्कर में बिहारी अब नहीं फसेंगे।
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पीएम मोदी ने बिहार के मोतिहारी (पूर्वी चंपारण) में एक जनसभा को संबोधित करने के दौरान ही पटना-नई दिल्ली समेत 4 नई अमृत भारत ट्रेनों को वर्चुअल हरी झंडी दिखाकर रवाना किया। उन्होंने मोतिहारी से कई रेल-सड़क तथा अन्य परियोजनाओं का उद्घाटन और शिलान्यास किया। इसके अंतर्गत चार नई अमृत भारत ट्रेनों को हरी झंडी दिखाई। इन ट्रेनों में राजेन्द्र नगर टर्मिनल (पटना) से नई दिल्ली, बापूधाम मोतिहारी से दिल्ली (आनंद विहार टर्मिनल), दरभंगा से लखनऊ (गोमती नगर) और मालदा टाउन से भागलपुर होकर लखनऊ (गोमती नगर) के बीच शामिल हैं।
वहीं, विभिन्न सड़क और रेल परियोजनाओं का शिलान्यास एवं लोकार्पण किया। प्रधानमंत्री ने 820 करोड़ से अधिक की लागत की एनएच-319 के परारिया से मोहनियां तक 4-लेन खंड का उद्घाटन किया। इसके साथ ही एनएच-319 पर 4-लेन के आरा बायपास की आधारशिला रखी, जो आरा-मोहनियां एनएच-319 और पटना-बक्सर एनएच-922 को जोड़ेगा। वहीं, दरभंगा में नए सॉफ्टवेयर टेक्नोलॉजी पार्क्स ऑफ इंडिया (एसटीपीआई) और पटना में एसटीपीआई की अत्याधुनिक इनक्यूबेशन सुविधा का उद्घाटन किया। ततपश्चात 4080 करोड़ रुपये की लागत वाली दरभंगा-नरकटियागंज रेललाइन दोहरीकरण परियोजना से रेललाइन की आधारशीला रखी।
पीएम मोदी मोतिहारी सभा में दीनदयाल अंत्योदय योजना-राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के अंतर्गत बिहार में लगभग 61,500 स्वयं सहायता समूहों को 400 करोड़ रुपये भी जारी किए। इसके अलावा, 12 हजार लाभार्थियों के गृह प्रवेश के तहत कुछ लाभार्थियों को चाबियां भी सौंपी और प्रधानमंत्री आवास योजना-ग्रामीण के 40 हजार लाभार्थियों को 160 करोड़ रुपये से अधिक जारी किए।
पीएम ने बिहार में सामाजिक सुरक्षा पेंशन में तीन गुना बढ़ोतरी की जिक्र किया। कहा कि कुछ दिन पहले नीतीश जी की सरकार ने सामाजिक सुरक्षा पेंशन की राशि 400 से बढ़कर 1100 कर दी। यह पैसा सीधे आपके बैंक खाते में ही जाएगा। पिछले डेढ़ महीने में ही बिहार के 24000 से ज्यादा स्वयं सहायता समूह को 1000 करोड रुपए से ज्यादा की मदद दी गई है। नारी सशक्तिकरण के प्रयासों से परिणाम भी दिखने लगे हैं। बिहार में लखपति दीदी की संख्या लगातार बढ़ रही है। 3 करोड़ बहनों को देशभर में लखपति दीदी बनाने का लक्ष्य रखा गया है। डेढ़ करोड़ बहनें लखपति दीदी बन चुकी हैं। बिहार में भी 20 लाख से ज्यादा लखपति दीदी बनी हैं। चंपारण में भी यह संख्या 80000 से ज्यादा है। आज यहां 400 करोड रुपए का सामुदायिक निवेश फंड भी शुरू किया गया है। यह पैसा नारी शक्ति को आगे बढ़ाने में काम आएगा। नीतीश जी ने जो जीविका दीदी योजना चलाई है वह बिहार के लाखों महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने का रास्ता है।
पीएम ने कहा कि भाजपा एनडीए का विजन है कि जब बिहार आगे बढ़ेगा तभी देश आगे बढ़ेगा। हमारा संकल्प है कि समृद्ध बिहार हर युवा को रोजगार। बिहार के नौजवानों को बिहार में रोजगार के ज्यादा से ज्यादा मौके मिले इसलिए तेजी से काम किया जा रहा है। नीतीश जी की सरकार में लाखों युवाओं को पूरी पारदर्शिता के साथ सरकार नौकरी दी है। नीतीश जी ने बिहार के नौजवानों को रोजगार के लिए भी नए अवसर दिए हैं। केंद्र सरकार कंधे से कंधा मिलाकर उनका साथ दे रही है। कुछ दिन पहले केंद्र सरकार ने एक बड़ी योजना को मंजूरी दी।
कहने का तातपर्य यह कि बिहार में चुनावी विकास की गंगा बहाने में उन्होंने कोई कोर कसर नहीं छोड़ी। राजनीतिक विश्लेषक बताते हैं कि चूंकि केंद्र की मोदी सरकार बिहार की सहयोगी पार्टी जदयू की बैशाखी पर ही टिकी हुई है, इसलिए इन विकास योजनाओं के पीछे सत्तारूढ़ नीतीश सरकार के दबाव से इनकार नहीं किया जा सकता है।
– कमलेश पांडेय
वरिष्ठ पत्रकार व राजनीतिक विश्लेषक
(इस लेख में लेखक के अपने विचार हैं।)